शिक्षा के क्षेत्र से मेरा नाता पिछले दो दशकों से भी अधिक
का है, और वर्ष-प्रतिवर्ष इस क्षेत्र की गति-विधियों, उतार-चढ़ाव
से परिचित होती रही। जो समय की माँग के अनुकूल थे। जहाँ सीखने-सिखाने की प्रक्रिया एक दूसरे के सहयोग से चलती रही। इस
लम्बे अन्तराल में अनेक परिवर्तन आये। पिछले कुछ दिनों से अकसर यह सुनने को मिल
रहा है कि छात्र किसी की सुनता ही नहीं है। यह एक सामान्य प्रश्न हम सभी के बीच एक
समस्या बनकर उभर रही है।
एक विश्लेषण के बाद मैं इस के कारण जानने की कोशिश में यह
जान पायी कि एक तो बच्चे का परिवेश। जहाँ पर सभी को किसी के विचार को सुनने समझने
की आदत ना हो। साथ ही बच्चे के विचारों और बातों को महत्व न देना, तथा उम्र का वह पड़ाव जहाँ बच्चा स्वयं और अपने मित्रों की
ही अधिक सुनता है। इन कारणों का निवारण बड़ा आसान है। सबसे पहले तो हम अपने बच्चे
पर विश्वास करें, उन्हें अवसर दें, बोलने और अपनी
बात कहने का मौका और मंच दें। हाँ हो सकता है, उसके वाक्य और शब्द परिष्कृत न हो परन्तु हमें उसकी भावनाओं
को समझने की कोशिश तो करनी ही चाहिए। उसकी बातों को, समस्याओं को गंभीरता से सुने, अपने प्रति विश्वास जगाये ताकि बेझिझक होकर
वह अपनी बात आपसे कह सके और स्वयं को उपेक्षित महसूस न करे।
Maya Saxena
Educator, Oxford Public
School
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ReplyDeleteVery well said maam,in today's time it has become important for a teacher to maintain a healthy relationship with Herr student... N to understand her students perspective n opinion.....
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